श्रीनगर में पली बढ़ीं, 23 साल की महविश मुश्ताक ने ऐन्ड्रॉएड फोन पर चलनेवाला एक ऐप बनाया है जिसका नाम है ‘डायल कश्मीर’.
हाल ही में कम्प्यूटर और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करनेवाली महविश ने इंटरनेट पर एक महीने का एक कोर्स किया जिसमें उन्होंने ऐन्ड्रॉएड पर ऐप बनाना सीखा.
एक मुफ्त ऐप, ‘डायल कश्मीर’ में सरकारी दफ़्तरों, अदालतों, स्वास्थ्य सेवाओं, कॉलेजों, यूनिवर्सिटी वगैरह के फोन नंबर, पते और ईमेल आईडी दिए गए हैं.
बीबीसी से ख़ास बातचीत में महविश ने कहा, “ख़ास कश्मीरियों के लिए कोई ऐप नहीं है, और ऐसे नंबर और पते का कोई डेटाबेस भी नहीं, इसलिए मैंने ये चुना और मेरा ये ऐप काफी लोकप्रिय भी हुआ है, 28 फरवरी से लेकर अबतक 9,000 लोग इसे डाउनलोड कर चुके हैं.”
लेकिन एक ऐप बनाकर उसे लोगों के ऐन्ड्रॉएड फोन में उतारना कितना आसान है?
'कश्मीरी होने से चर्चा में'
"मेरे ऐप की जानकारी फैलाने में भी मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया – मेरे दोस्तों ने फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए इसे लोकप्रिय बनाया."
महविश मुश्ताक
महविश के मुताबिक इसमें कुछ ख़ास पेचीदगी नहीं है, “इसके लिए गूगल प्ले स्टोर पर एक डेवलपर अकाउंट खोलना होता है और फिर ऐप डेवलप करना होता है, बस फिर वो सबके लिए उप्लब्ध हो जाती है.”
पर अगर ये इतना आसान है तो कई लोग कई ऐप्स बनाकर अपलोड कर सकते हैं, ऐसे में महविश का ऐप क्यों लोकप्रिय हुआ?
श्रीनगर स्थित बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर के मुताबिक ‘डायल कश्मीर’ किसी कश्मीरी लड़की के द्वारा बनाया गया पहला ऐप है, इसलिए ख़ूब चर्चा में आ गया है.
हालांकि रियाज़ ये भी कहते हैं कि कश्मीर में अब भी इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले कम हैं, और ऐन्ड्रॉएड फोन का उपयोग करनेवाले और भी कम.
इस सबके बावजूद महविश अपनी सफलता के लिए इंटरनेट को ही श्रेय देती हैं, “भूगोल की सीमाएं खत्म हो रही हैं, शिक्षा के क्षेत्र में इंटरनेट के ज़रिए बहुत कुछ आसानी से उप्लब्ध हो गया है, बल्कि मेरे ऐप की जानकारी फैलाने में भी मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया – मेरे दोस्तों ने फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए इसे लोकप्रिय बनाया.”
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